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Great-gujar-haji-bhati-kairanvi-Sirajul Aulia

M. Umar kairanvi :-सिराजुल औलिया अर्थात नेक बन्दों ,वलियों के चिराग़ हाजी अब्दुल्लाह उर्फ हाजी भाट्टी रहमतुल्लाह अलैहि (गूजर) क्षेत्र का शक्तिशाली परिवार कल्सयान (हिन्दू गूजर और मुसलमान गूजर, इनका बहुत पुराना इतिहास है) से चला गूजर परिवार जिनमें इस समय हिन्दू गूजर में श्री हुकुम सिंह और मुस्लिम गूजर में श्री मुनव्वर हसन साहब विशेष महत्व रखते है। कल्सयान परिवार में शाह जी झिंझाना वालों के हाथ पर गूजर मुसलमान हये।  

 मुस्लिम गूजर खानदान में आगे चलकर ख़ुदा से डरने वाली ऐसी शख्सियत हुई जिनसे मिलने के लिये विश्व ख्याति प्राप्त इस्लामी विद्वान मौलाना अशरफ अली थानवी रह. साहब कैराना मिलने आया करते थे। एक कथन जो कैराना में बहुत मशहूर है

سراج الاولیا حاجی عبد اللہ عرف حاجی بھاٹی رحمة اللہ علیہ (گوجر) صاحبِ تقویٰ، ولی صفت
Urdu

चौधरी इरशाद साहब, नगर अध्यक्ष कैराना समाजवादी पार्टी जानकारी देते हुये बताते हैं कि एक बार थानवी रह. साहब (मृत्यू 1936 ई.) भाट्टी साहब से मुलाक़ात के लिये तशरीफ लाये, तब आप शामली रोड पर रजबाहे(छोटी नहर) में कपडे धो रहे थे, सलाम के बाद हाजी भाट्टी साहब ने कहा हज़रत आप खेत पर चले जाये में भी तुरन्त पहुॅच रहा हॅू। थानवी रह. साहब ने खेत पर खेद पृकट किया कि में इतनी दूर से आया और आप रजबाहे से बाहर नहीं निकले। भाट्टी साहब ने कहा कि हज़रत तब में अपनी पत्नि के कपडे धो रहा था, आप को देख कर मैंने कपडे पानी में पैरों के नीचे दबा लिये थे, अगर में बाहर आता तो वह पानी में बह जाते और अगर में कपडे हाथ में लेकर बाहर आता तो गै़र की दृष्टि कपडों पर पडती। इस कथन में अधिक जानकारी देते हुये अकबर अन्सारी साहब पुत्र खलीफ़ा रामू साहब कहते हैं कि हाजी भाट्टी साहब पत्नि के कपडे ईख (गन्नों के खेत) में सुखाते थे कि अन्जाने में भी किसी की नज़र न पडे।



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 ज्ञात रहे कि उस समय घरों में जल व्ववस्था नहीं होती थी इस लिये जो लोग महिलाओं के पर्दे (घूंघट ) का खयाल रखते थे वह घर में पानी लाते अथवा नहर, तालाब या खेत पर जाकर स्वयं ही धो लेते थे।

 इरशाद साहब कहते हैं कि हाजी भाट्टी साहब आपकी नानी के दादा थे। ताया चौधरी ज़हूर हसन साहब इनको अक्सर हाजी भाट्टी साहब की सत्य कथायें सुनाया करते थे उनका दो वर्ष पूर्व देहांत हो गया है। ताया से सुनी बातों से जानकारी देते हुये बताते हैं कि हाजी भाट्टी साहब कभी क्रोध नहीं करते थे, वह खेत में हल चलाते समय चारों कोनें पर पानी की बधनी (घडा) रखते थे, जिससे आने जाने वाले प्यासों को पानी पिला सकें और हल चलाते समय जिस कोने पर नमाज़ का समय हो जाये उसी कोने पर तुरन्त वज़ू (पवित्र होने के लिये जल का प्रयोग) कर सकें। भोले-भाले लोग आज़माते कि देखे भाट्टी साहब क्रोध करते हैं या नहीं, उनके बार-बार पानी मांगने पर आप बिना क्रोध किये स्वयं ही पानी पिलाते थे, इस वजह से भी स्वयं पिलाते थे कि कहीं प्यासे आदमी के हाथों पर किसी प्रकार की गन्दगी लगी हो और उससे उनका वज़ू का पानी गन्दा होजाये।

 एक और कथन इरशाद साहब सुनाते हैं जिस से भाट्टी साहब के तकवे अर्थात अल्लाह के डर का अनुमान होता है कि एक बार आपकी भेंस ने बराबर के खेत का एक जवार का पत्ता खा लिया तो शाम को उस भेंस का दूध उस पडोसी के खेत मालिक के घर पहुॅचा दिया और कहा कि इस दूध पर आपका हक़ है। ऐसा ही दूसरा कथन है कि हल चलाते समय उनके छींका लगे बैल ने बराबर के खेते में आम के पेड की झुकी हुई डाल से किसी तरह आम खा लिया तो भाट्टी साहब तुरन्त पेड के मालिक के पास पहुॅचे और बात बताकर पूछा कि उस आम का क्या मूल्य लेना चाहेंगे? उस आदमी ने मज़ाक में कहा कि उस आम का मूल्य 100 रूपये लूंगा, जो उस समय आम पेड के मूल्य से भी अधिक था। आप तुरन्त घर गये और 100रूपये लाकर उस आम के मालिक को दिये। वह बहुत शर्मिन्दा हुआ,उसने कहा हज़रत में तो मज़ाक़ कर रहा था। भाट्टी साहब ने कहा या तो वह मूल्य लो जो तुमने बताया है या क्षमा करदो। उसने क्षमा कर दिया। इस कथन में अकबर अन्सारी साहब बताते हैं की भेंसों के मुख पर जो छींका लगाया जाता है वह आपने प्रारम्भ किया था।

 जहूर साहब से सुना एक और कथन इरशाद साहब बताते हैं कि कोई बुज़ुर्ग कैराना में आने वाले थे,उन्होंने कहलवाया था कि वह उस घर में खाना खायेंगे जिस घर में हलाल रिज़्क खाय जाता हो। तब परेशान लोग भाट्टी साहब के पास पहुचे और परेशानी बताई। आपने कहा कि अल्लाह का शुक्र है कि मेरा रिज़्क़ हलाल है, सिर्फ एक बार ऐसा हुआ था कि मुझे फिक्र होई कि मेरी रोज़ी में मिलावट हो गई है। एक बार मेरे बैल ने दो-चार कदम पडोस के खेत में रख दिये थे जिस वजह से उस के खुर्रां पर कुछ मिट्टी बराबर के खेत की लग कर मेरे खेत में आ गई थी। कुछ समय पश्चात मैंने उस खेत वाले से क्षमा मांग ली थी। उसके अलावा कभी मुझे अपने हलाल रिज़्क़ में कोई कमी नज़र नहीं आई। अकबर अन्सारी साहब इस कथन में बताते हैं कि हाजी भाट्टी साहब ने इसके पश्चात यह नियम बना लिया था कि उनकी भेंस या बैल अहतियात कि बावजूद जितने क़दम दूसरे के खेत में रख देते, वह उतने ही फावले भरकर अपने खेत की मिट्टी उसके खेत में डालते थे।

 हाजी भाट्टी रह. के बारे में कहते हैं कि उन्होंने तालीम हासिल नहीं की थी लेकिन बुजुर्गों के साथ रहने और खुदा के डर ने आपको शिक्षित कर दिया था। एक बार किसी कैरानावासी ने हज़रत थानवी रह. के पास पहुॅच कर कहा कि हज़रत मेंने अपनी पत्नि से कह दिया था कि ‘अगर वह अपने बाप के घर गई तो उसको तलाक़’. कुछ समय पूर्व वह अपने बाप की मृत्यू होने पर वहां गई तो क्या उसे तलाक़ हो गई? थानवी साहब ने कहा कि इस बारे में हाजी भाट्टी साहब से पूछो। वह भाट्टी साहब के पास आया और बात बताई, तब हाजी भाट्टी रह. साहब ने कहा कि जब तुम्हारी पत्नि घर गई तब बाप की मृत्यू होजाने के कारण वह घर भाईयों का था इस लिये उसे तलाक़ नहीं हुई है।

 शायर शमशीर साहब अपने दादा अब्दुर्ररहीम साहब से सुनी एक कथा सुनाते हैं कि एक बार खेत के पुराने काग़ज़ात देखते हुये भाट्टी साहब को ज्ञात हुआ कि एक ज़मीन का टुकडा किसी लाला का है वह तभी उसे देने पहुॅच गये जबकि कई पुश्तें गुज़र चुकी थी।

 मास्टर शमा साहब बताते हैं कि मक्का में 2007 के हज में हाजी भाट्टी साहब के तकवे यानी खुदा से डरने के बारे में बयान किया गया।

 मुज़फ्फर हलवाई साहब और डा. सलीम अख़्तर फारूक़ी साहब कहते हैं कि उनकी दुकान पर अक्सर बुजुर्ग हाजी भाट्टी साहब के किस्से सुनाते हैं।

 अब्बाजी हाजी शमसुल इस्लाम मजाहिरी बाग़बान साहब बताते हैं कि उनको हाजी फज़ल कुरैशी साहब शबे बरात के मौके पर दादा गरीबुल्लाह, मौलवी फैज़ुल्लाह, हाजी भाट्टी रह. और हाफिज़ बुन्दू साहब की कब्रों पर फातिहा पढने के लिय ले जाया करते थे।

 आल दरमियान में चौधरी मुनव्वर हसन साहब की कोठी के पीछे एक मीनार वीली मस्जिद है जो हाजी भाटी वाली मस्जिद कहलाती है, मस्जिद के बराबर वाली गली के आखिर में आपका पैदाईशी मकान था। बाद में आपका खानदान इकरामपुरा में बस गया।

 हाजी भाट्टी रह. अपने खानदानी बगैर चार दीवारी के कब्रिस्तान की कच्ची कब्र में दफन हैं, जो झिझाना-कैराना बाईपास रोड, आर्यापूरी में कुम्हारों के भटटे के पास है।

 भाट्टी वाली मस्जिद, भाट्टी साहब की कब्र के चित्र के साथ-साथ कल्सयान और कैराना की ऐतिहासिक जानकारियों के लिये देखे  हिन्दी पुस्तक ‘‘कैराना कल और आज’’।
 20.3.2007
II-edit: 6-22019
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