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मौलाना वहीदुज़्ज़मां कैरानवी

तुझ प अरबी अदब को बडा नाज़ था, जिससे लाखों में तू ही सरअफराज़

फैजाने हक से कलम वह मिला, जो अरब से भी आंखे मिलाता रहा।

(जुबैर आज़मी)

आप 17 फरवरी 1930 ई0 में कस्बा कैराना में पैदा हुये। आपके वालिद मौलाना मसीहुज़्ज़मां कैरानवी साहब दारूल ऊलूम देवबन्द से फाज़िल और उस समय के बडे किसान एवं वकील थे। आज़ादी के समय में इनको मजिस्ट्रेट बनाया गया। मसीहुज़्ज़मां साहब कैराना की जामा मस्जिद के ज़िम्मेदार भी थे। मौलाना अहमदुल्लाह साहब के साथ आप बर्तानिया का तख्ता उलटने की कोशिश के जुर्म में एक माह जैल में रहे। आप देवबंदी उलमाओं के साथ आज़ादी की लडाईयों में शामिल थे। जामा मस्जिद में मौलाना वहीदुज़्ज़मां साहब के पहले अरबी उस्ताद मौलाना खालिद थे जो अहमदुल्लाह साहब के लडके थे। वह इस सेवा के लिये कुछ नहीं लेते थे, जबकि उनकी बच्चों पर मेहनत बारे में मौलाना वहीदुज़्ज़मां कैरानवी साहब खुद लिखते हैं कि मौलवी खालिद साहब एक बडे किसाान के बेटे थे इस लिये कभी-कभी एक हफते तक रात में खेत पर पानी देने जाना होता, तब वह किताबे साथ ले जाते रात भर अवलोकन करते फिर सुबह बच्चों को पढाते फिर कुछ आराम करते। झिन्झाना, दिल्ली और हैदराबाद के बाद आप इस्लामिक उच्च शिक्षा के लिए देवबन्द चले गये। मौलाना काज़ी मुजाहिद उल इस्लाम लिखते हैं 1369-70 हिजरी में आपके परीक्षा के परिणाम देखकर सबने वाह वाह और शाबाश कहा। शिक्षा प्राप्त करने के बाद आप यहीं दारूल ऊलूम में शिक्षक हो गये। यह वह समय था जब देवबंद से लखनऊ के विद्यार्थी छुटिटयों में अपने घर जाते तो रास्ते में दारुल ऊलूम नदवा-लखनऊ के विद्यार्थी उनपर अपनी अरबी भाषा ज्ञान की धाक जमाते, आपके शिक्षक बनने के बाद दारूल ऊलूम के विद्यार्थी नदवा वालों को ढूंडकर अपना सिक्का जमाने लगे। आपने 28 साल दारूल ऊलूम की खिदमत की, बहुत से नुमायाँ काम अन्जाम दिये, उर्दू और अरबी में कई किताबें लिखी, जिनमें अरबी लुगत (शब्दकोष, डिकशनरी) अल्कामूस अल्जदीद को बेइन्तिहा मकबूलियत हासिल हुई। कई किताबें मदरसों के निसाब में शामिल हैं। विश्व में सैंकडो आपके शिष्य फैले हुये हैं। दारूल ऊलूम की कई इमारतें आपकी ज़ेरे निगारानी ता‘मीर हुईं। 1985 ई0 में आप मुआविन मोहतमिम (सह संचालक, सह व्यवस्थापक) बनाये गये। 1990 ई0 में मौलाना असद मदनी द्वारा आपको ज़बरदस्ती हटा दिया गया,। इस बारे में आपके शिष्य लिखते हैं कि उन्हांेने मौलाना वहीदुज़्ज़मां की कामयाबियों से खतरा महसूस किया। इस बारे में तफसील ‘‘तर्जुमान दारूल ऊलूम’’ मौलाना वहीदुज़्ज़मां कैरानवी नम्बर में है। जब हुआ तेगे़ ज़ालिम से मजबूर तू, हो गया अपने घर में महसूर तू।तुझको भूला ना दारूल ऊलूम आज तक, जिसमें तू नहरे हिकमत बहाता रहा।(जुबैर आज़मी) एक मुलाक़ात में मौलाना वहीदुद्दीन एडिटर ‘‘अल रिसाला’’ ने मौलाना वहीदुज़्ज़मां कैरानवी साहब की बातों बातों में अरबी भाषा की परीक्षा ली, परिणामस्वरूप आपके अरबी भाषा ज्ञान की तारीफ की थी। आप मौलाना रहमतुल्लाह कैरानवी साहब के मदरसा सौलतिया मक्का भी गये थे। सउदी अरब, कुवैत, मिस्र, इंग्लैण्ड, मारिशस, फ्रांस आदि अनेक देशो की आपने यात्रायें कीं थी। अन्तिम समय में मौलाना वहीदुज़्ज़मां कैरानवी साहब ने अपने ऊपर जादू-टोना का असर महसूस किया। यहाँ तक की जिस आमिल से कुछ लाभ हुआ, उसकी भी मौत हो गयी। आप 15 अप्रैल 1995 में इस दुनिया से रूखसत हुये। आपके तीन लडके और एक लडकी एवं कई भाई भतीजे सभी आला तालीम के बाद समाज में नुमायाँ खिदमत अन्जाम दे रहे हैं। छोटे भाई मौलाना अमीदुज्ज़मां कैरानवी साहब जो ज़ाकिर नगर,,दिल्ली में रहते हैं हिन्दुस्तान की अहम शख्सियत हैं। मौलाना वहीदुज़्ज़मां कैरानवी साहब की किताबें, दारूल ऊलूम में उनकी जेरे निगरानी तामीर होने वाली ईमारतें और अधिक जानकारी कैराना की वेबसाईट www.kairana.net पर देख सकते हैं। उर्दू जानने वाले ‘‘तर्जुमान दारूल ऊलूम’’ का मौलाना वहीदुज़्ज़मां कैरानवी नम्बर पढें जो 580 पृष्ठ का यह शुमारा तन्ज़ीम इब्नाये कदीम, दारूल उलूम देवबंद ने छापा है, जाकिर नगर, नई दिल्ली.25 से 100 रूपये में प्राप्त हो सकता है, फोन न0 011-26987535 से मालूम कर सकते हैं के आपके आसपास यह शुमारा कहाँ मिल सकता है। इन्शाअल्लाह कैराना वेबसाईट में भरपूर जानकारी दी जायेगी।

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