Please Subscribe �� Youtube Channel



कैराना जो कभी कर्ण की राजधानी थी -- mamchand chauhan

लेखक: मामचन्द चैहान - दैनिक जागरण, 10 सितम्बर 1997
प्रस्तुतकर्ताः उमर कैरानवी

कैराना जो कभी कर्ण की राजधानी थी मुजफ़्फ़रनगर से करीब 50 कि. मी. पश्चिम में हरियाणा सीमा से सटा यमुना नदी के पास करीब 90,000 की आबादी वाला यह कस्बा कैराना प्राचीन काल में कर्णपुरी के नाम से विख्यात था जो बाद में बिगडकर किराना नाम से जाना गया और फिर किराना से कैराना में परिवर्तित हो गया। सर्व कैराना से दक्षिण में ही बसे तीतरवाड़ा गाँव में एक तीतर खाँ पठान रहता था जिसके जुल्म से लोग काफी तंग आ चुके थे। बताते हैं कि इस क्षेत्र में उस समय होने वाली शादी के बाद दुल्हे द्वारा यहाँ से गुजरने वाली दुल्हन की डोली उक्त तीतर खाँ एक रात अपने पास रखता था। इसी प्रकार उस समय जब तीतर खाँ ने अपनी आदत के अनुसार यहाँ से गुजरने वाली एक बारात को रोक कर नव-वधु को जबरन दुल्हे से ले लिया तो दुल्हे पक्ष के लोग शहर पंजीठ में रहने वाले उस समय के अति प्रभावशाली व्यक्ति राणाहुर्रा जो कुछ वर्षो पूर्व ग्राम जूण्डला (हरियाणा) से आकर यहाँ बसा था के पास पहुँचे और तीतर खाँ के जुल्म की कहानी उनको सुनाई। आज जहाँ पर तीतरवाडा बसा है वह पंजीठ से मात्र 3 किलो मीटर की दूरी पर है तथा कैराना से 5 किलो मीटर दक्षिण में है। बताते हैं कि राणाहुर्रा ने फरियाद सुनकर तीतर खाँ से युद्ध करने की ठान ली और वह तीतर खाँ के पास तीतरवाडा पहुँचा और वधु को मुक्त करने का आग्रह किया जिस पर तीतर खाँ ने नव वधु को वापिस करने से मना कर दिया इस पर राणा हुर्रा ने अपने 20 पुत्रों व अन्य साथियों सहित तीतर खाँ पर आक्रमण कर दिया। इस युद्ध में तीतर खाँ को मौत के घाट उतार दिया गया और नव वधु को मुक्त करा लिया गया। इस युद्ध में राणा हुर्रा के 17 पुत्र शहीद हो गये। पुत्र कलसा, दीपचन्द व दोपाल बचे इनमें से बाद में कलसा से कैराना क्षेत्र के गूजरों की चैरासी कलस्यान नाम से बसी जो आज भी कलस्यान खाप के नाम से जानी जाती है। दूसरे पुत्र दीपचन्द ने देवबंद का शासन किया जबकि तीसरे पुत्र दोबाल ने रामपुर मनिहारान पर शासन किया और वहाँ पर खूबडो की चैरासी बसायी। बताते है कि मुक्त करायी गयी नव वधु राणा हुर्रा की पत्नी बनी, उससे 2 पुत्र सलखा व सैगला हुये इन दोनों पुत्रों में से सलखा ने सिसौली पर शासन किया और बलियान खाप बसायी और सैगला ने मेरठ जनपद के चैरासी खाप सैगलान बसायी। जानकारी के अनुसार आज 4 चैरासी खाप हैं।

कैराना क्षेत्र में कलसयान नाम से, रामपुर मनिहारान में खूबडों की चैरासी तथा सिसौली क्षेत्र में बालियान खाप तथा मेरठ में सैगलान खाप के नाम से विख्यात है। यह शहर पंजीठ से राणा हुर्रा की ही वंशावली है कुल मिलाकर शहर पंजीठ जो आज तक पिछडे गाँव के रुप में विद्यमान है, ने इस क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण इतिहास की कडी प्राचीन इतिहास मे जोडी जिसका यहाँ उल्लेख करना आवश्यक था इस गांव में वर्तमान समय में सैनी समाज के लोगों सहित मुस्लिम गूजर रहते हैं। कैराना पर मुगल बादशाहों की नजरे इनायत रही है यही कारण है कि उन्होंने यहां पर अनेक महत्वपूर्ण निर्माण कराये जिनके अवशेष आज भी जीर्ण अवस्था में खण्डहर बने मुगलकाल की गवाही दे रहे हैं। कैराना के पूर्व में कांधला, पश्चिम में पानीपत, उत्तर में झिंझाना व शामली तथा दक्षिण में प्राचीन शहर पंजीठ व तीतरवाडा स्थित है। यहाँ पर यह भी उल्लेखनीय है कि पांडवों ने जो पाँच गाँव दुर्योधन से माँगे थे वह गाँव पानीपत, सोनीपत, बागपत, तिलपत, वरुपत (बरनावा) यानि पत नाम से जाने जाते हंै। महाभारत काल में कैराना से होकर ही यमुना नदी बहती थी और यहाँ पर राजा कर्ण का राज्य था जिन्होने अपने समय में कई महत्वपूर्ण किले बनवाये और इसके चारो ओर पांडवों का रहन सहन व आवागमन था। कहा जाता है कि दानवीर कर्ण यमुना नदी के किनारे प्रातःकाल सूर्य देवता की पूजा किया करते थे। इसी स्थान पर राजा इन्द्र को राजा कर्ण ने अपने कवच कुण्डल दान में दे दिये थे। तब से ही राजा कर्ण दानवीर के नाम से विख्यात हुए।

महाभारत युद्ध स्थल होने के कारण तथा इसके कैराना के समीप होने के कारण पाण्डव व कौरवों ने कुरुक्षेत्र के आसपास चारों ओर युद्ध शिविर लगाये थे इन शिविरों में श्याम के नाम से जहाँ श्री कृष्ण रहते थे शामली कस्बा है तथा कैराना में महाबली कर्ण, नकुड़ में नकुल, तथा थानाभवन में भीम आदि के शिविर थे इसी प्रकार क अक्षर से नाम प्रारम्भ होने वाले कस्बों में करनाल, कैराना, कुरूक्षेत्र, कांधला आदि में कुरूवंश के युवराज दुर्योधन ने अंगदेश बनाकर कर्ण को सौंपा था और राजा कर्ण ने यमुना किनारे इस स्थान को केन्द्र बिन्दु मानकर महत्वपूर्ण निर्माण कराये लेकिन बाद में मुगल कालीन समय में यह महाभारत कालीन स्मृतियां लुप्त कर दी र्गइं। बाद में सम्राट जहांगीर दिल्ली से दो बार कैराना आये और उन्होंने यहां पर दरबारेआम किया। लाल पत्थरों से निर्मित यहाँ पर कई दरवाजे व इमारतें आज भी इस काल की याद दिला रही हैं। सम्राट जहाँगीर व औरंगजेब ने जब पानीपत की लडाई लडी थी तब उन्होंने कैराना को ही अपने सैनिकों की छावनी बनाई थी उनके कई मकबरे नुमा भवन आज भी इस्लामिया स्कूल के पास जहाँ पर वर्तमान समय में पुलिस चैकी इमाम गैट है, मौजूद हैं। इस क्षेत्र को आज भी छावनी के नाम से पुकारते हैं। औरंगजेब द्वारा बनाई गयी मस्जिद जो करीब 400 वर्ष पुरानी है, यहाँ पर मौहल्ला दरबार में मौजूद है। पिछले दिनों जब इस मस्जिद की दक्षिण की ओर की दीवार तोड कर उसमें दुकान निकाली जा रही थी तो इस मस्जिद के नीचे एक तहखाना व सुरंग मिली थी जैसे ही इस रहस्य की चर्चा फैली शहरवासी देखने के लिए उमड पडे। उस हिस्से में दीवार करके प्रशासन ने बंद करा दिया था। इस बारे में कुछ लोगों का कहना था कि उक्त सुरंगनुमा तहखाने से उस समय की कोई दुलर्भ या पुरानी कीमती वस्तु मिली थी यह मामला आज भी रहस्यपूर्ण बना हुआ है। इस बारे में इतिहासकारों का यह भी कहना है कि यह सुरंग व तहखाना राजा कर्ण द्वारा यमुना नदी से पानी लाने के लिये यहाँ बनाई थी।

सन 1527 ई. में शामली परगना जिसमें कैराना भी शामिल था सम्राट जहांगीर ने अपने खास विश्वसनीय नवाब मुकर्रब खाँ को भेंट स्वरूप दिया था। इस परगने की सीमा करनाल तक थी मुकर्रब खाँ ने कैराना को अपना लिया और विकसित किया था उन्होने कैराना में पानीपत-खटीमा मार्ग के पास एक सुन्दर तालाब, नवाब किला, नवाब दरवाजा एवं सुरंगे आदि बनवाई थीं जिनके अवशेष आज भी मौजूद हैं। तालाब के पास कई पुरानी खण्डहर नुमा इमारतें, दरवाजे व सिदरियों में मंदिर आकार के खण्डहर और बैगमपुरा मौहल्ले मंें एक बडी पुरानी सराय, बैगम महल, बारहदरी तथा सराय वाली मस्जिद जो बेगम महरूनिशा ने बनवाई थी तथा कई विशाल दीवारें अब भी खण्डहर बनी प्राचीन संस्कृति की याद दिला रही है। बेगमपुरा मौहल्ले में हकीम मुकर्रब खाँ की बेगमें रहती थी और मौहल्ला दरबार व आसपास उनका दरबार-ए-आम लगता था। यहाँ पर नवाब के किलों में चार कसौटी के खम्ब थे जो वर्तमान में पानीपत शहर में सुप्रसिद्ध हजरत मौला कलन्दरशाह के मजार में लगे हुये हैं। कैराना में सम्राट जहाँगीर के लिये नवाब हकीम मुकर्रब खाँ ने एक तख्ते ताऊस (सिंहासन) भी बनवाया था जिसकी कीमत उस समय विदेशी सरकार ने लंदन में 72 करोड रूपये लगायी थी जिसको औरंगजेब के समय नादिरशाह लूट कर ईरान ले गया था जो आज भी वहां पर मौजूद है।

जहाँगीर बादशाह ने किसी कार्य से खुश होकर कैराना व क्षेत्र में अपने विश्वसनीय नवाब हकीम मुकर्रब खाँ के द्वारा अनेक विकास कार्य कराये नवाब मुकर्रब खाँ ने पानीपत रोड के पास करीब 55 बीघा भूमि में तालाब व किला बनवाया जिसकी चैडाई लगभग 250 वर्ग गज है इस तालाब की एक ओर दीवार नहीं है जबकि तीन ओर पक्की दिवारें है जिनमें सिढियां बनी हुई हैं इस तालाब के बीच एक सुन्दर व सफेद पत्थरों से निर्मित करीब 15 फुट ऊंचा व 60 फुट लम्बा चैडा टापू (चबूतरा) है बताया जाता है कि नवाब साहब अपनी बेगमों के साथ किश्ती द्वारा तालाब की सैर किया करते थे तथा बीच में स्थित चबूतरे पर आराम फरमाया करते थे इस तालाब के पास बने किले के नीचे तीन सुरंगे हैं। जिनका एक दरवाजा यमुना नदी की ओर तथा एक दिल्ली की और तीसरा पानीपत की ओर खुलता है तथा यहीं से एक सुरंग नवाब गेट से होते हुए दरबार वाली शाही मस्जिद में खुलती थी। बताते हैं कि उक्त रास्ते से नवाब साहब नमाज के लिए जाते थे। दूसरी नगर में एक कुएं में आकर खुलती है जबकि तीसरी सुरंग दिल्ली में इसलिये खुलती थी क्योंकि वहीं सम्राट जहाँगीर रहता था।

इसी के पास बू अलीशाह कलन्दर शाह भी थे। आज भी वहाँ पर उनकी स्वयँ की एवं उनके परिवारजनों की कब्रें मौजूद हैं। कैराना में स्थित ऐतिहासिक नवाब तालाब की कहानी के सम्बंध में बुजुर्ग लोग बताते हैं कि नवाब मुकर्रब खाँ ने एक नौलखा बाग भी लगवाया था जिसमें 360 कुएं खोदे गये थे जिनसे इस बाग की सिंचाई होती थी। इस नौलखा बाग में एक एक पेड फलदार लगवाये थे जिनमें आम, अमरूद, सेब, लीची, कैहवा आदि थे। इस बाग में किले के आसपास एक हजार पिस्ता के पेड थे जबकि भारत में आज और उस समय कहीं भी पिस्ता पैदा नहीं होता था। आज वह पेड तो नहीं हैं बल्कि लगभग दो सौ कुओं के निशान आज भी बंद हालत में मौजूद हैं इस तालाब की तीन साईड प्राचीन समय की बनी हुई हैं आज भी टूटी हालत में स्थित है। कहा जाता है कि इस तालाब को उस समय के दानवों ‘भूतों’ द्वारा एक ही रात में बना दिया गया था। इसमें लगे दानव उस समय रात को एक तरफ की दीवार अधूरी छोडकर भाग गये थे जब किसी महिला ने रात्रि को ही भोर होने से पहले चक्की चला दी थी। दानवीर कर्ण के नाम से विख्यात कैराना में राजा कर्ण, सम्राट जहाँगीर और नवाब हकीम मुकर्रब खां का इतिहास सरकारी गजट में भी मिलता है। कैराना के एक इन्टर कालिज के शिक्षक श्री आशाराम शर्मा जिन्होंने यहां के इतिहास पर शोध किया है के अनुसार यहाँ पर शासन व प्रशासन ने प्राचीन काल की बनी स्मृतियों के सौन्दर्यकरण पर भी ध्यान नहीं दिया और हमेशा कैराना की उपेक्षा ही की। प्रशासन ने कभी भी इस कस्बे को पुरातत्व विभाग को नहीं सौंपा और न ही ऐतिहासिक इमारतों की सुरक्षा हेतु कोई कदम उठाया। स्वाधीनता आन्दोलन में शामली तहसील को क्र्रंातिकारियों द्वारा जला दिया गया था जिस कारण अंग्रेजों ने बाद में कैराना में तहसील बनवाकर इसको मुख्यालय का रूप दे दिया था।

कैराना कस्बा हकीमों की नगरी के नाम से भी विख्यात रहा है इसके अलावा शास्त्रीय संगीत के नाम पर तथा फिल्मी दुनिया के अभिनय आदि में विशेष ख्याति प्राप्त की। कैराना ने वीणावादक, बांसुरी वादक, ध््राुपद गायक तथा अनेक शास्त्रीय गायक देश को दिये हैं। यहाँ ‘‘कैराना घराना’’ जो अब ‘‘किराना घराना’’ के नाम से जाना जाता है की संगीत साधना मुगल काल से हुई थी। उस समय कैराना के रहने वाले उस्ताद शकूर अली खाँ द्वारा यह संगीत कला शुरू की गई थी। किराना घराना आज भारत में ही नहीं बल्कि देश विदेश में भी प्रसिद्ध है कुछ वर्ष पूर्व किराना घराने की यशस्वी कलाकार श्रीमती गंगुबाई हंगल का शास्त्रीय गायन, नव भारत टाइम्स ग्रुप द्वारा स्वर्गीय प्रधान मंत्री इन्दिरा गांधी की पुण्य तिथि पर अपने उत्सव में आयोजित किया था। 20वीं सदी से पहले कैराना घराने का संगीत देश विदेश में प्रसिद्ध रहा। बम्बई की दर्जनों फिल्मों में अभिनय करने वाले हकीम कैरानवी जो पहले लम्बे समय तक अमिताभ बच्चन के हैयर डेªसर रहे, कैराना मौहल्ला शेखबðा के थे। हकीम कैरानवी परिवार के शमीम अहमद यहाँँ कैराना में शामली बस अड्डे पर हकीम हैयर डेªसर के नाम से दुकान आज भी करते हैं। उत्तम कुमार से हकीम कैरानवी की शक्ल मिलती थी इस कारण उत्तम कुमार की मृत्यु होने पर हकीम कैरानवी ने उनकी अधूरी फिल्में पूरी कीं। हकीम कैरानवी की पत्नी आज भी बम्बई में फिल्म अभिनेत्रियों के हैयर डेªसर सम्बंधी कार्य बखूबी निभा रही हैं।

इस समय हकीम कैरानवी के लडके आलिम हकीम सलमान खान, अजय देवगन, काजोल, काजल, सैफ अली खान और विवेक ओबेराय का हैयर डेªसर है। इसके अलावा पीरजी मुख्तार उर्फ मुन्शी मुनक्का कैराना के मौहल्ला इमामबाडा में रहते थे जिन्होंने लगभग 50 सुपरहिट फिल्मों मे गाया। इन फिल्मों में मेरे महबूब, प्यार का बन्धन, महबूूब की मेंहन्दी आदि प्रमुख हैं। मौहल्ला दरबार निवासी तबला वादक वहीद बल्लेमिया, बन्देमिया, बीन का लहरा बजाने में माहिर थे और गायकों में अब्दुल करीम खां जिनके फिल्मी रिकार्ड तहलका मचा रहे हैं, कैराना के ही रहने वाले थे। यूरोप, अमेरिका, चीन आदि की यात्रा करने वाले अब्दुल करीम खाँँँ कुत्तों के राग गाने में विख्यात रहे हैं उनके गीतों के एच. एम. वी. कम्पनी ने ग्रामोफोन रिकार्ड बनवाये उनकी स्मृति में भारत सरकार ने आल इंडिया रेडियो पर भी एक प्रतिमा बना रखी है तथा एच. एम. वी. रिकार्ड कम्पनी के ओडियो कैसिटों एवं रिकार्ड प्लेयरों पर कुत्ते का जो चिन्ह अंकित है वह भी कैराना का ही कुत्ता था जिसे बाद मैं अब्दुल करीम खाँँँ बम्बई ले गये थे। बहरे वहीद खाँ, अब्दुश्शकूर, नवाब सरंगी, बहरे अमीर खाँँँ आदि भी जो इसी कस्बे की देन है राग रागनियों में विख्यात रहे हैं। सऊदी अरब में इस्लाम धर्म की शिक्षा व मक्का में हाजियों की सेवा हेतु चलाये जा रहे मदरसे के संस्थापक हजरत मौलाना रहमतुल्ला कैरानवी ने पादरियों से मुकाबला किया एवं अंग्रेजी फौज के खिलाफ भी लडे। कैराना के मौहल्ला दरबार के निवासी थे अंग्रेजी शासन में देश छोडकर चले गये थे। ज्ञात रहे कि इनका मदरसा अब एक इस्लामिक युनिवर्सिटी जैसा बन चुका है जहाॅ कैराना से जाने वाले हज यात्रियों को विशेष सम्मान मिलता है।

मराठा काल में कैराना में करीब साढे तीन सौ वर्ष पूर्व बना देवी मन्दिर देश में अपनी तरह का पहला मन्दिर है जिसकी नींव सेवा मिरी मराठा ने रखी थी। इस मंदिर की सात मंजिलें हैं और अन्दर से पहली मंजिल से सातवीं मंजिल में पूरा कैराना नगर ही नहीं बल्कि 6 कि. मि. दूर बह रही यमुना एवं इतनी ही दूरी तक चारों ओर के ग्राम देखे जा सकते हैं। इन पैडियों में विराजमान भव्य माता दुर्गा की सुन्दर प्रतिमा के ऊपर चक्करदार जीने से आते जाते समय पैर नहीं आ सकते। इस मंदिर का निर्माण पूर्ण करने में पंडित न्यादर मल, जो कि मंदिर के पुजारी स्वर्गीय रण्बीर शरण के दादा थे, ने कार्य किया, वर्तमान में न्यादर गिरी के वंशज राजकुमार पुजारी है। इस देवी मंदिर के सामने 12 बीघा भूमि में पक्का तालाब है जिसके आसपास संतोषी माता का मंदिर तथा स्वयं भूगर्भ से उत्पन्न प्राचीन काल का शिवलिंग व वणखण्डी महादेव मंदिर, भव्य जैन मंदिर व जैन बाग स्थित है। इसके अलावा नगर में करीब 500 वर्ष पुरानी जामा मस्जिद सहित इस समय कुल 155 छोटी बडी मस्जिद हैं जिनमें प्रतिदिन हजारों मुलसमान खुदा की इबादत करते हैं। इसके अलावा नगर में और भी कई प्राचीन धार्मिक-स्थल प्राचीन समय की याद दिला रहे हैं। यहां पर मौहल्ला छडियान में ख्वाजा मुईनुददीन चिश्ती अजमेरी की याद में सैंकडों वर्षों से हर वर्ष एक सप्ताह से दो सप्ताह तक मेला लगता है जिसमें हिन्दू मुस्लिम बढ-चढकर शामिल होते हैं बताते हैं कि चिश्ती साहब धर्म प्रचार करते हुये यहाँ आये थे और छडियान चैक पर रात्री विश्राम किया था तथा यहीं पर अपनी छड़ी गाडी थी तभी से यहाँ का मैदान छडियान मैदान के नाम से मशहूर है। कैराना की मिर्च दुनियां भर में मशहूर है। यहाँ की मिर्च उ.प्र., हरियाणा, पश्चिम बंगाल, आन्ध््रा प्रदेश, तमिलनाडु व बम्बई तक निर्यात होती है, वहीं यहाँ पर गेहूं, चावल, आलू, गोभी, बेर आदि भी भरपूर पैदा होते हैं इसके अलावा विदेशों को निर्यात होने वाली सलहेरी भारत के लाडवा ‘हरियाणा’ अमृतसर ‘पंजाब’ व कैराना मुजफ़्फ़रनगर की छाप देशभर में प्रसिद्ध है यहाँ पर हजारों कारीगरों द्वारा प्रतिदिन हजारों मीटर देसी सूत द्वारा वस्त्र आदि बडी मात्रा में तैयार होते हैं तथा हाथ की छपाई का भी यहाँ पर कमाल है हाथ की छपाई के लिहाफ, चद्दर आदि दूर-दूर तक सप्लाई होते हैं।

साम्प्रदायिक सद्भाव और हिन्दू मुस्लिम एकता का प्रतीक कैराना जिसे कई बार यमुना नदी की बाढ़ ने प्रभावित किया है तथा महाभारत में भी मुख्य केन्द्र रहा है, आज शासन व प्रशासन की उपेक्षा का शिकार है। यहाँ के निवासी चै. अख्तर हसन ‘पूर्व सांसद’ एवं बाबू हुकुम सिह ‘पूर्व कैबिनेट मंत्री’ तथा पूर्व विधायक बशीर अहमद व वर्तमान सांसद चै. मुनव्वर हसन ने इसको पर्यटन स्थल बनाने एवं अन्य सौन्दर्यकरण करने का प्रयास तो ज़रूर किया लेकिन यह सब प्रयास .......हुये जबकि इस क्षेत्र के ग्राम बीलड़ा निवासी स्व. चै. नारायण सिंह उ.प्र. के उप मुख्य मंत्री भी रह चुके हैं तथा पूर्व प्रधानमंत्री चै. चरण सिंह की धर्मपत्नि श्रीमती गायत्री देवी भी कैराना से सांसद चुनकर लोकसभा में पहुंच चुकी हैं। कैराना पत्रकारिता जगत में अग्रणी रहा है यहां से उस समय सन 1936 ई. में ‘जरूरत’ नामक साप्ताहिक अखबार का प्रकाशन स्व. देवीचन्द बिस्मिल द्वारा प्रारम्भ किया गया था जब जनपद मुजफ़्फ़र नगर से कोई अखबार नहीं निकलता था बल्कि मेरठ से मात्र एक समाचार पत्र ‘क्रांति’ निकलता था। स्व. देवी चन्द बिस्मिल द्वारा प्रारम्भ ‘जरूरत’ साप्ताहिक को उर्दू भाषा में शुरू किया गया था जो 1960 से 1980 तक छपने के बाद बिस्मिल के स्वर्ग सिधारने के कारण बंद हो गया।

पत्रकारिता में रूचि रखने वाले स्व. पंडित जवाहर लाल नेहरू ‘पूर्व प्रधान मंत्री’ भी बिस्मिल से मिलने कैराना आये थे। वर्तमान समय में कहने को तो यहाँ से एक दर्जन साप्ताहिक एवं पाक्षिक समाचार पत्रों को प्रकाशन होता है लेकिन सरकारी उपेक्षा एवं आर्थिक स्थिति ठीक न होने के कारण यह समाचार पत्र नियमित नहीं छप रहे हैं और कई लगभग बंद होने की स्थिति में हैं। कैराना व ग्रामीण क्षेत्र के जुझारू एवं खोजी पत्रकारों ने यहाँ पर समय-समय पर अनेकों रहस्यों से पर्दा उठाने के साथ ही ग्रामीण व नगर क्षेत्र में व्याप्त जटिल समस्याओं को उठाकर सरकार को अवगत कराकर उनका समाधान कराने में भरपूर योगदान दिया है। कुल मिलाकर कैराना भारत में जहाँ एक ओर अपना एक विशेष स्थान रखता है वहीं दूसरी ओर वर्तमान समय में विभिन्न समस्याओं से जूझ रहा है। जिस कारण यहाँ का आम नागरिक रोजगार की तलाश में निकटवर्ती कस्बों में अपनी जीविका के स्रोत ढूँढने को विवश है।


2 comments:

Unknown said...

हुत अच्छी जानकारी!

किन्तु दुर्योधन ने कर्ण को तो अंग देश का राज्य प्रदान किया था (सन्दर्भः http://agoodplace4all.com/?p=588), इस तरह से तो कैराना ही प्राचीन अंग देश हुआ।

Unknown said...

मैं कैराना के पास ही रहता हूं।
पर इतनी अच्छी अौर गजब की जानकारी पढ़ के मजा आ गया

Post a Comment

My Facebook